साथियो,
वर्ष 2011 चार मुख्य कवियों का शताब्दी वर्ष था। पिछली पोस्ट में हमने शमशेर की कविता पढ़ी , इस बार पढ़िए अज्ञेय की कविता.....
प्रेमोपनिषद्
वह जो पंछी
खाता नहीं , ताकता है,
पहरे पर एकटक जागता है-
होगा, होगा जब।
मैं वह पंछी हूँ
जो फल खाता है
क्योंकि फल, डाल, तरु, मूल,
तुम्हीं हो सब।
पर एक
जागता है, ताकता है-
कौन है
मैं हूँ , जागरूक, पहरेदार।
पक्षी और डाल, तरु और फूल,
सभी और देखता हूँ
तुम्हारा हो कर।
मुक्त करे तुम्हें, मौन
वही तो होगा
मेरा प्यार।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ
(जियो उस प्यार में, जो मैंने तुम्हें दिया- संपादन ओम निश्चल, किताबघर दिल्ली से उद्धृत)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें